Sunday, 4 February 2018

अन्योलमा

कवि : अन्तिम
       
खै के भो...कसो भो..?
केही अर्थै भएन..!!
कस्तो..?
बतास जस्तो..अधुरो चाहना..!!

कसरी किन..?
मलाई भन..!!
बढ्छ ढुकढुकि..
दुख्छ यो मन..!!

कसैले कसलाई..?
जाली प्रेममा भुलायो..!!
असत्य र पापहरूले..
विस्वासलाई जलायो..!!

खै के भो..?
कसो भो..?
केही थाहै भएन..!!
मृत्युलाई कसैले..
जित्नै सकेन..!!

खै के भो..
के भो..के भो..?
षड्यन्त्र र राजनीतिले..
अस्तित्व मेटाउने भो..!!
रात बितिसक्यो..
तर निद्रा लाग्दैन..!!

खै के भो..?
कसो भो..?
आफैंलाई सम्झाउ..
कसरी..?
जीवन अधुरै छ..
आफैंलाई बुझाउ..
कसरी..?

खै के भो..के भो..?
बुझ्नै सकेन !!
कसलाई कसले..
बुझ्नै गाह्रो भो !!
पाउनै सकेनौं..
मुक्तिको आभास..!!
छैन रहेछ..
कसैको विश्वास..!!
खै के भो..?
कसो भो..?

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