उनहें मालूम नही
हम ने यूँ सदी गुजार दी
हँस हँस कर
आग और पानी में।
अब तो आग भी हमारी
और ये पानी भी हमारी
हवा का रूख हमारी ओर कितने भी हो ले
वो पत्तियों को उड़ा ले
टहिनियों को तोड़ ले
अँधेरा कुछ ही देर तक है
खामोसी भी कुछ ही देर तक हैं
सुब्ह तो होना हैं
हर रात के बाद।
(रवि रोदन)
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