बस मन की खिड़कियों से झाँक रहा हुँ
उन तमाम तस्वीरो को
जो जहन पर अतीत के बादल बनी सदीयों से बैठी है।
समय की सेल्फ पोट्रेट
चेहरो को ढाप कर
जिन्दगी की धूप और कुछ लम्हे
बस बयाँ कर रही है
जिसे जी कर हम जिंदा है।
युक्ल्प्टिस के पत्तों की सरसराहट
और समय का आलार्म
संघर्ष के गीतो की याद दिलाती है
जब झाँकता हूँ
खिडकियों से
मन कि खिडकियों से।
चित्र: रवि रोदन
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