- सुमित्रा तमांग
जाने कब से
जाने कब तक
ये बलिदानी राह चलेगी.
पता नहीं है साथी हम को
अपनी मंजिल कहां मिलेगी.
कुर्बानी की गाथा देखो
पूरा जगत गर्व से गाता
हम को अपने हक़ की लेकिन
अपनी भूमि कहां मिलेगी.
हमने अपने शीश चढ़ाकर
कितने देशों का मान बढ़ाया
अपना हो सम्मान जहां
वह धरती हमको कहां मिलेगी
मुल्क हमारा कहां है साथी
कहां मिलेगी आजादी
जाने कब से जाने कब तक
झेल रहे हैं बर्बादी
अधिकारों की बात करी तो
लाठी, गोली, जेल मिली
इन्कलाब और आन्दोलन भी
अभी तलक बस फेल मिली
कहो शौक से बस इतना कि सारा जहां तुम्हारा है...
जिस मिट्टी में दफन पूर्वज
उस पर नही अधिकार तुम्हारा है
सरहद पर जब मिले शहादत
तब तिरंगे मे लिपटे
पंजाबी भाइ पंजाब चले,
बिहारी भाई बिहार चले,
राजस्थानी राजस्थान चले
और तुम..!
तुम्हे अपना अंतिम सफर
गुमसुम तय ही तय करना है
मेरे शहीद तिरंगे में लिपटे गोर्खा कहां चलें...?
तुम्हे यह सवाल पूछना भी मना है..
ओ मेरे प्यारे स्वाभिमानी गोर्खा
तुम्हारी परवाह किसे है..
तुम्हारा स्वाभिमान से जीना मना है...
बंधक बनाकर रखे गए हो तुम
ये बंधन खोलजे के लिए कोई नही आएगा..
तुम्हे खुद ही यह बंधन खोलने होंगे
आजादी पाने के लिए
अपनी जमीं अौर अपना आकाश
तुम्हे खुद ही बनना होगा
साथ ही तलाश करने होंगे
संगठित होने के
नये अौजार
तभी तुम
अपनी धरती
अपना देश
अौर
अपने पुरखों कि पहचान
अक्षुण रख सकोगे
वरना इधर उधर यूँ ही
भटकते रहोगे
यूँ ही
भटकते रहोगे...
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